हरिद्वार नगर निगम द्वारा कचरा निस्तारण के लिए खरीदी गई ज़मीन पर अब सवाल उठने लगे हैं।
बताया जा रहा है कि तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी ने उत्तराखंड शासन से अनुमति लेकर सराय निवासी जितेंद्र सुमन और धर्मपाल से 35 बीघा भूमि करीब 56 करोड़ रुपये में खरीदी थी। रजिस्ट्री से पहले ज़मीन का उपयोग बदलवाकर उसे कृषि से आवासीय (143 प्रक्रिया) कराया गया, जिससे उसकी कीमत बढ़ गई। लेकिन जैसे ही ज़मीन की रजिस्ट्री नगर निगम के नाम हुई, 143 आदेश निरस्त हो गया और ज़मीन दोबारा कृषि हो गई।
इससे सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या 143 की कार्रवाई सिर्फ नगर निगम के करोड़ों रुपये खर्च कराने के लिए की गई थी? जब ज़मीन अब भी कृषि है, तो उसे आवासीय दर पर खरीदकर इतना अधिक पैसा क्यों चुकाया गया?
दस्तावेज़ लेखक पहल सिंह वर्मा और संदीप धीमान का कहना है कि 143 आदेश अब प्रभावहीन है। इसके चलते ज़मीन का स्टांप ड्यूटी भी अधिक दी गई और विक्रेताओं को बाज़ार से ऊंची दरों पर भुगतान किया गया।
अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या राज्य सरकार इस 56 करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि की वसूली तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी से करेगी?
इस मामले की जांच वरिष्ठ IAS अधिकारी रणवीर चौहान कर रहे हैं। माना जाता है कि वे निष्पक्ष और अनुभवी अधिकारी हैं। उनकी रिपोर्ट के बाद ही तय होगा कि दोषी कौन है और वसूली किससे होगी — वरुण चौधरी से या ज़मीन बेचने वालों से।
फिलहाल, सबकी नजर सरकार के अगले कदम पर है।






