राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के वातावरण में अद्भुत उत्साह और भक्ति का अद्भुत वातावरण था। जब संध्या के समय माँ गंगा की आरती की दिव्य ध्वनि गूंज में राष्ट्रप्रेम के संस्कार भी झिलमिला रहे थे। इस दिव्यता के बीच अरुणाचल प्रदेश की महिला एवं बाल विकास, कला एवं संस्कृति तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री श्रीमती दासंगलु पुल जी 16 अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल के साथ इस पावन आरती में सम्मिलित हुईं। पहली बार परमार्थ के तट पर उनकी उपस्थिति ने पूर्वोत्तर भारत और उत्तर भारत के आध्यात्मिक संबंधों को नए आयाम प्रदान किए।
परमार्थ की गंगा आरती केवल ज्योति और मंत्रोच्चार का अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक ऐसी सांस्कृतिक धरोहर है जो भक्ति के साथ समाज व राष्ट्र के प्रति कर्तव्य बोध भी जगाती है। इसी कड़ी में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर भी ऐसी ही आरती की शुरुआत करने पर सार्थक चर्चा हुई, ताकि पूर्वोत्तर की इस दिव्य नदी पर भी वही संस्कारों की ज्योति प्रज्ज्वलित हो, जो गंगा तट पर वर्षों से जल रही है। यह प्रस्ताव भारतीय संस्कृति की एकात्मता को दृढ़ करता है नदियाँ भले भिन्न हों, भाव एक ही माँ। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने लाल किले के निकट हुए धमाके में मारे गए लोगों के लिये विशेष प्रार्थना की और उनके प्रति भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की।
घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिये विशेष यज्ञ कर प्रार्थना भी की गई। स्वामी जी ने कहा कि आज के समय में युवाओं के लिये राष्ट्रभक्ति की शिक्षा अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि “राष्ट्र है तो हम हैं, यह भाव शिक्षा में होना चाहिए। शिक्षा के साथ संस्कार जुड़े रहें, तो ऐसे ब्लास्ट नहीं होंगे, दिल्ली जैसी घटनाएँ नहीं होंगी, फिर देश में दिल जीतने वाली घटनाएँ होंगी।स्वामी जी ने कहा कि शिक्षा केवल करियर का साधन न बन जाए, बल्कि चरित्र और समर्पण की साधना बने यही इस विशेष दिन का संदेश है। श्रीमती दासंगलु पुल जी ने परमार्थ गंगा आरती की दिव्यता, भाव और तन्मयता को अद्भुत बताया। उन्होंने कहा कि यह आरती केवल देवभक्ति नहीं, बल्कि देशभक्ति के संस्कार भी जगाती है।






