“हरा” प्रकृति का रंग है, हरियाली का रंग है, कलर स्पेक्ट्रम में शीतलता का प्रतीक है। वहीं रेड-ऑरेंज (भगवा या सैफरॉन के संदर्भ में) उष्णता का प्रतीक है, खतरे के साइनबोर्ड का रंग है। इसके अलावा लाल-ऑरेंज फलों के सड़ने और पत्तियों के झड़ने का प्रतीक है। कुल मिलाकर भगवा शेड के रंग खराब होते हैं और हरा अच्छा होता है। यहां तक कि डॉ भी मरीज़ की आंखों के ऑप्रेशन के बाद, आंखों पर हरे रंग का कपड़ा ही लगाते हैं। यहां तक डॉक्टर्स भी उस समय हरे रंग के ही कपड़े पहनते हैं।
सबसे पहले तो लाल रंग एनर्जी स्पेक्ट्रम में कम एनर्जी वाला और हरा रंग ज्यादा एनर्जी वाला होता है। सरल शब्दों में लाल रंग का शेड शीतल और हरा उष्ण होता है। आपको लाल-ऑरेंज शेड चुभता इसलिए है क्योंकि आपकी आंखों में लाल-रेड डिटेक्ट करने वाली कोशिकाएं सबसे ज्यादा होती हैं। इसलिए ही खतरे के साईनबोर्ड रेड शेड में होते हैं क्योंकि आपकी आंखें इस रंग को सबसे ज्यादा रजिस्टर करती हैं। यह लाल रंग की खूबी है, कमी नहीं। हरा रंग धारण किए सामने से आता खतरा तो इंसान नोटिस ही नहीं कर पाता।
हर फल के पकने और लालिमा धारण करने का मतलब यह होता है कि अब फल भक्षण के लिए तैयार है। पशु-पक्षी इसी रंग के आधार पर इसे खाते हैं और खाकर इसका बीज यहां-वहां फैला देते हैं, ताकि वृक्ष/पौधे की संतति बढ़ सके। फल के भगवा रंग को आप भाषाई चतुरता दिखा कर “सड़ने-गलने” की संज्ञा दे सकते हैं पर विज्ञान की दृष्टि में भगवा रंग ही “फलों के भक्षण का सही समय” का संदेश देता है।
फलों के भगवा रंग अथवा पत्तियों के भगवा रंग का कारण “एंथ्रोसायनिन” नामक पिगमेंट होता है, जिसे वृक्ष सनलाइट कम होने पर क्लोरोफिल प्रोडक्शन घट जाने के कारण पैदा करते हैं। भगवा शेड प्रदान करने वाला यह पिगमेंट न सिर्फ वृक्ष की परजीवियों से रक्षा करता है, बल्कि स्ट्रेस हैंडलिंग में भी पेड़ की मदद करता है। तो वास्तव में भगवा एक अप्राकृतिक रंग होने की बजाय प्रकृति की संकटकाल में रक्षा करने वाला एक रंग है।
जहां तक प्रकृति, पेड़-पौधों, घास या पत्तियों के हरे रंग में होने की बात है तो इतना कॉमन सेंस सबको होना चाहिए कि वनस्पति अपनी ऊर्जा जरूरतें “लाल-नारंगी-भगवा” वेवलेंथ के रंगों से पूरी करती है। हरा तो वह रंग है, जिसे वनस्पति थूक देती है, यानी उत्सर्जित कर देती है। प्रकृति जीवित भगवा से है, न कि हरे से।
वास्तव में प्रकृति में रंग का कोई कांसेप्ट नहीं है। प्रकृति में बस ऊर्जा है, उनकी वेवलेंथ है। उन वेवलेंथ को अलग-अलग रंगों में ग्रहण करना हमारे दिमाग़ का खेल है। हमारे दिमाग से इतर प्रकृति में कोई रंग नहीं है। रंग कुछ और नहीं, हमारा भ्रम मात्र है।
मनोरोग से बचिए, नहीं बच सकते तो कम से कम विज्ञान को अपने मनोरोग में मत घसीटिए।