ओपोजिशनल डिफिएंट डिसऑर्डर

सुदेश आर्या

कभी कुछेक छोटे बच्चे देखे होंगे एक दो बरस तक, कभी उनसे कोई टॉफी या खिलौना छीन लो वो तुरंत अग्रेसिव हो जाएंगे। चीजें फेंक देंगे जैसे रिमोट, फोन या कोई भी वस्तु।

वो जो रोना, चीखना, चीजें फेंकनी, इन सब हरकतों को मेडिकल की भाषा में टेम्पर टेंटर्म कहते हैं। यह लगभग 2 से 15 मिनट तक रह सकता है। लेकिन 15 मिनट से ज्‍यादा के हिंसक नखरे करता है, तो यह चिंता का विषय है।

इस टेम्पर का इलाज है – बच्चे को अकेला छोड़ दो कुछ देर। वो अपने आप शांत हो जाएगा। कोई नखरे न करेगा फिर।

जिस बच्चे को ओपोजिशनल डिफाइएंट डिसऑर्डर है वह बच्चा ऐसा व्यवहार आमतौर पर करता है। इसके अलावा कुछ बच्चों में व्यवहार इतना गंभीर होता है कि बच्चे को साधारण रोजमर्रा के काम करने में भी परेशानी होती है। आपका बच्चा अगर दिनचर्या के काम पूरे न कर रहा है तो अलर्ट रहना चाहिए। पढ़ाई करते करते ये टीवी देखना या खेलने चले जाएंगे। खाना सर्व करते करते मोबाइल चलाने लग जाएंगे।

इनके मूड का हमेशा या एक सेकेंड में बदलाव होने के चांस रहते हैं। ये कोई चीज मांगें आपसे और आपने मना कर दिया तो ये एक पल में आपा खो देते हैं। फिर घर में तोड़फोड़ करेंगे, चीजें फेंकना, रोटी खाने में नखरे करना, दरवाजे जोर से बन्द करेंगे, चिल्लाना और गाली देना भी हो सकता है।

अगर इनके कोई बड़े भाई बहन है घर में तो उनसे बहस करेंगे, माँ बाप के सवालों का जवाब देंगे नहीं और देंगे तो भी उनकी सोच से एकदम विपरीत। बड़ों से पूछे गए सवालों के जवाब नहीं देते और उनकी बात नहीं मानते हैं। अपनी ग़लती किसी कीमत पर नहीं मानेंगे। अक्सर लोगों को जानबूझकर परेशान करते हैं। अक्सर गलतियों या चुनौतीपूर्ण व्यवहार के लिए दूसरों को दोषी मानते हैं। दूसरों से आसानी से नाराज हो जाते हैं।

इनकी एक सबसे बड़ी ख़ासियत होती है, अक्सर देर रात तक जागेंगे सुबह लेट उठेंगे और उठते ही इनके पसन्द का और इनके हिसाब से नाश्ता बनना या होना चाहिए।

अगर 6 बरस से 26 बरस के बच्चे के व्यवहार में ऐसी चीजें लगातार दिख रही हों तो सतर्क रहने की आवश्यकता है। शुरुआती दौर में ओडीडी के लक्षण सिर्फ़ घरवालों या नज़दीकी लोगों के साथ ही प्रकट हो सकते हैं। जैसे-जैसे परेशानी बढ़ती है, बच्चे के स्कूल और आस पड़ोस में व्यवहार भी बदल जाता है। जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है, लक्षणों का असर बच्चे की अक्रामकता भी बढ़ा देती है। ओडीडी के कई कारण होते हैं।

कभी-कभी यह आनुवांशिक होता है, वहीं कई बार मां-बाप की उपेक्षा भी कारण बनती है। यदि मां बच्चे को अधिक समय नहीं दे पा रही है, साथ ही उसे डांटती-मारती अधिक है तो ओडीडी की परेशानी बच्चे में उभर सकती है। ओडीडी का एक कारण आपकी पारिस्थितिकी भी हो सकती है। इसलिए इनको मारपीट न करें और न ही ज्यादा आर्ग्यू करें।

ओडीडी की समस्या दो तिहाई किशोरों में देखी जा सकती है। अगर समय से इसका सही इलाज नहीं हो और समस्या बढ़ती रहे तो यह गंभीर मानसिक रोगों का कारण बन सकती है। खासकर 6 से 8 साल की उम्र में इसका ख़तरा अधिक होता है। कभी-कभी वयस्कों में भी यह समस्या जन्म लेती है। यदि इसका समय से इलाज नहीं मिले तो यह डिप्रेशन, एंजाइटी, लैंग्वेज डिसऑर्डर , मूड डिसऑर्डर, लर्निंग डिसऑर्डर जैसी समस्याओं को पैदा करता है।

ज्यादा गम्भीर लक्षणों में दवाई ही चलेगी, बाक़ी कुछ टिप्स हैं:-

  • बच्चे को बहुत अधिक डांटे नहीं, प्यार से उसकी समस्याएं सुनें।
  • बच्चे को जितना हो सके समय दें।
  • बच्चे से बात करते वक्त धैर्य रखें, उसकी पूरी बात सुनें।
  • ऐसा माहौल बनाएं कि बच्चा आपसे स्कूल, दोस्तों सबसे जुड़ी बातें शेयर कर सके।
    ओडीडी से पीड़ित बच्चों में पॉजिटिव व्यवहार को मोटिवेट करने के लिए उनकी तारीफ करें।
    ओडीडी से पीड़ित बच्चों के व्यवहार में बदलाव के लिए उन्हें रिवॉर्ड दें। ये काम विशेष रूप से तीन आठ साल की उम्र के बच्चों के लिए अच्छा है।

इन बच्चों से सीधे बात करें, उन्हें किसी चीज के लिए प्रेशर न दें।
नकारात्मक रिजल्ट का उपयोग करने से बचने की कोशिश करें।

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