○चेते गुङ ○बैशाखे तेल , ○जेठै पंथ ○असाढै बेल ।○सावण साग ○भादवो दही , ○क्यार करेला ○काती मही। ।○अगहन जीरा ○पूये धाणा, ○माहे मिसरी ○फागण चीणा ।।।○ ईं बारह सूं देह बचाय तो घर वैद्य कदहूं ना आय ।।                                       (राजस्थानी कहावत)

      ● चैत्र में गुङ, ●बैशाख में तेल , ●जेठ में ऊपाळा जातरा, ●आसाढ में बेल फल , ●सावण में हरी सब्जी , ●भादवै में दही , ●आसोज में करेला , ●कार्तिक में छाछ , ●मिगसर में जीरो , ●पौ में धाणौं , ●माघ में मिश्री अर ●फागण में चणा नीं खावणा चाईज्यै।
                            
हिन्दी भावार्थ
बारह महिनों में अलग अलग वो ऐसी चीजें जिनका हम परहेज करके निरोगी रह सकते हैं।
1️⃣ चैत्र  – गुङ नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इस महिने का नया गुङ पथ्य नहीं होता।
2️⃣ वैशाख  – तेल नहीं खायें क्योंकि वैशाख में जो पसीना निकलता हैं उन छिद्रों को तेल अवरूद्ध कर देती हैं।
3️⃣ ज्येष्ठ  – पंथ यानी पथ पर पैदल नहीं चलना चाहिए क्योंकि इस महिने गर्मी बहुत ज्यादा होने से शरीर डिहाइड्रेशन  में आ जायेगा।
4️⃣ आसाढ – बेल फल बहुत गुणकारी होकर भी आसाढ में खाने योग्य नहीं होता।
5️⃣ श्रावण  – सावण में पत्ते वाले आहार न लें क्योंकि इस मास में बरसात के समय पृथ्वी गर्भीणी होकर अदृश्य असंख्य जीव पैदा करती हैं जिनके अंडज पत्तों पर भी होते हैं।
6️⃣ भाद्रपद- इस महिने में दही के जो पथ्य बैक्टीरिया होते हैं वो ह्मूडीटी के चलते जल्दी जल्दी बढ़कर खतरनाक हो जाते हैं।
7️⃣ आसोज – करेला आसोज में पककर खाने योग्य नहीं रहता। करेला पितकारक होता हैं।
8️⃣ कार्तिक  – कार्तिक में मही यानी मट्ठा ना खायें क्योंकि कार्तिक से हमें ठंडा नहीं गरम आहार शुरू कर देना चाहिए।
9️⃣ मिगसर  – जीरा ना खायें क्योंकि जीरा प्रकृतिगत ठंडा होता हैं। जबकि मिगसर में ठंड ही होती हैं।
 पौष – पौष में धनियां ना खायें क्योंकि धनिये की प्रकृति ठंडी होती हैं। सर्दियों के इन दिनों में गर्म प्रकृतिगत व्यंजन खावें। उनका सिन्धोणो बनाकर खायें। गरम दिनों में सिन्धोणा नहीं बनाते। गर्मियों में सिर्फ धनिये के लड्डू बनाकर खावें।
1️⃣1️⃣ माघ – माघ में मिश्री ना खायें । मिश्री की तासीर भी ठंडी होती हैं जो गरम ऋत में धनिये के लड्डुओं के साथ खावें हैं।
1️⃣2️⃣ फाल्गुन- फाल्गुन में चना ना खावें । एकदम नया चना गैस कारक होता हैं। फाल्गुन में वायुमंडल में भी इधर-उधर की बिना ठिकाने की हवा चलती रहती हैं। मौसम भी कभी कैसा तो कभी कैसा रहता हैं। चना वैसे भी गैस कारक होता हैं।
 
इस प्रकार अगर आप अपथ्य का पालन करेंगे तो शरीर को जरूर सुरक्षित रख पायेंगे।

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