परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, विश्व हिन्दू परिषद् की केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल बैठक में विशेष रूप से आमंत्रित

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी को विश्व हिन्दू परिषद् की केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल बैठक में विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। दो दिवयीस बैठक में भारत के 12 से अधिक राज्यों के 150 से अधिक पूज्य संतों ने सहभाग कर धर्मान्तरण करने वाले हिन्दुओं को अपने धर्म में वापसी का संदेश देते हुये समाज में सद्भाव, समरसता, समता, परिवार में संस्कार व संस्कृति का संगम बना रहे, धार्मिक मूल्यों के संरक्षण आदि अनेक विषयों पर  विशेष चर्चा हुई।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत एक बहुधार्मिक राष्ट्र है। निष्पक्ष और भयमुक्त समाज का निर्माण तभी संभव है जब किसी भी प्रकार का जबरन, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्मांतरण न किया जाए। संस्कारी समाज का अस्तित्व केवल तभी संभव है जब लोग अपनी इच्छा और समझ से धर्म का पालन करें।

उन्होंने आगे कहा, बलपूर्वक धर्मपरिवर्तन का अर्थ है व्यक्ति की आत्मा का परिवर्तन। किसी के पास भी यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह किसी का धर्म जबरदस्ती बदल सके। धर्म और संप्रदाय की पहचान का परिवर्तन आसान नहीं है; यह व्यक्ति की आत्मिक और मानसिक पहचान का परिवर्तन होता है। जब लोग अपनी धार्मिक आस्था बदलते हैं, तो वे अपनी पूरी सांस्कृतिक और आत्मिक पहचान को परिवर्तित कर रहे होते हैं।

धर्मांतरण का विषय अत्यंत संवेदनशील है और इसके कारण व्यक्ति और समाज दोनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। स्वामी जी ने जोर देकर कहा कि धर्म का पालन व्यक्ति की आत्मा की पुकार से होना चाहिए, न कि किसी बाहरी दबाव या लालच का परिणाम।

स्वामी जी ने यह भी कहा कि धार्मिक असहिष्णुता समाज में अविश्वास और अस्थिरता पैदा करती है इसलिए, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता को प्रोत्साहित किया जाए केवल तभी हम एक समृद्ध, सुरक्षित और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।

धर्मान्तरण समाज में विभाजन और अशांति का कारण बन सकता है। उन्होंने सभी धर्म गुरुओं और पूज्य संतों से आग्रह किया कि धर्मान्तरण के विरुद्ध में समाज को जागरूक करना और धर्म के सच्चे मूल्यों का प्रचार-प्रसार करना होगा क्योंकि धर्मान्तरण का परिणाम न केवल व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है, बल्कि यह समाज की संरचना और उसकी स्थिरता पर भी पड़ता है। धर्म का पालन व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विषय है, और इसे किसी भी प्रकार के जबरन हस्तक्षेप से मुक्त रहना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा, धार्मिक असहिष्णुता और जबरन धर्म परिवर्तन समाज को कमजोर बनाते हैं। हमें एक साथ मिलकर एक ऐसा समाज बनाना होगा जहां हर व्यक्ति को अपनी धार्मिक आस्था का पालन करने की स्वतंत्रता हो और उसे अपनी धार्मिक पहचान बनाए रखने का अधिकार हो।
इस अवसर पर आचार्य सुधांशु जी महाराज, आचार्य विवेक मुनि जी, विहिप के कार्यवाहक अध्यक्ष श्री आलोक कुमार जी और अनेक पूज्य संतों ने सहभाग कर अपना प्र्रेरणादायी उद्बोधन दिया।

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